About Ujjain
उज्जैन को उज्जैनी और अवंतिकापुरी के नामो से भी जाना जाता है | यह प्राचीन शहर, मध्य-भारत के मालवा प्रान्त के देवतुल्य क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है | आज यह मध्य-प्रदेश का अंग है | प्राचीन काल में इस शहर को उज्जैनी के नाम से जाना जाता था | महान महाभारत के काव्यलेख में भी हमें उज्जैनी का उल्लेख मिलता है, तब यह अवंती राज्य की राजधानी थी | चौथी शताब्दी इ. पु. के बाद इस स्थान को पृथ्वी का मध्यान माना गया, तथा खगोलीय शाश्त्र के अध्ययन के लिए उपयूक्त माना गया है | उज्जैन हिन्दुओ के सात पवित्र शहर ( सप्त-पूरी ) में से एक है | यह स्थान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए प्रसिद्द है, तथा हर १२ वर्षो के बाद यहाँ कुम्भ मेले का आयोजन होता है | इसी स्थान से भगवान श्री कृष्ण, बलराम तथा मित्र सुदामा को महर्षि सांदीपनी से शिक्षा मिली थी
पुराणों में उज्जैन का उल्लेख अति पवित्र स्थान तथा देवताओं की नगरी के रूप में किया गया है | पुराणों में उल्लेख है की जब देवता तथा दानवो ने समुद्र मंथन कर अमृत की प्राप्ति की थी तथा जब अमृतपान के लिए देवताओं तथा दानवो में युद्ध हो रहा था तब उस अमृत की कुछ बुँदे धरती पर भी गिरी थी, जिन स्थानों पर वो बुँदे गिरी थी उन्हें हरिद्वार, नासिक, उज्जैन तथा प्रयाग के नाम से जाना गया | अत: यह स्थान हिन्दुओ के लिए अति पवित्र माने गए | उज्जैन अपनी पवित्रता और कुम्भ मेले के लिए अत्यंत प्रस्सिध है | हर बारह वर्ष के बाद यहाँ कुम्भ मेले का आयोजन होता है | इस नगर पर विक्रमादित्य तथा अशोक जैसे महान राजाओं का राज रहा है | आज उज्जैन पौराणिक तथा आधुनिकता के समागम का परिचायक है |
उज्जैन मध्य-भारत के मालवा प्रांत में स्थित है | यहाँ काली तथा पथरीली मिट्टी पाई जाती है | यहाँ सोयाबीन, गेहू, ज्वार तथा बाजरे की खेती होती है |

Holy City Ujjain

मंगल ग्रह की उत्पत्ति का पौराणिक वृत्यांत |

मंगल ग्रह की उत्पत्ति का पौराणिक वृत्यांत स्कंद पुराण के अवंतिका खण्ड में आता है की एक समय उज्जयिनी पुरी में अंधक नाम से प्रसिद्ध दैत्य राज्य करता था | उसके महापराक्रमी पुत्र का नाम कनक दानव था | एक बार उस महाशक्तिशाली वीर ने युध्य के लिए इन्द्र को ललकारा तब इन्द्र ने क्रोधपूर्वक उसके साथ युध्य करके उसे मार गिराया | उस दानव को मारकर वे अंधकासुर के भय से भगवान शंकर को ढूंढते हुए कैलाश पर्वत पर चले गये | वह देवताओं के स्वामी इन्द्र ने भगवान चंद्रशेखर के दर्शन करके अपनी अवस्था उन्हें बतायी और प्रार्थना की, भगवन ! मुझे अंधकासुर से अभय दीजिये | इन्द्र का वचन सुनकर शरणागत वत्सल शिव ने अभय देते हुए कहा - इन्द्र तुम अंधकासुर से भय न करो |
इसके पश्च्यात भगवान शिव ने अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा, युद्ध अत्यंत घमासान हुआ, और उस समय लड़ते - लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के सामान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल उत्पन्न हुए |
अंगारक , रक्ताक्ष तथा महादेव पुत्र, इन नामो से स्तुति कर ब्राह्मणों ने उन्हें ग्रहों के मध्य प्रतिष्ठित किया, तत्पश्चात उसी स्थान पर ब्रम्हाजी ने मंगलेश्वर नामक उत्तम शिवलिंग की स्थापना की | वर्तमान में यह स्थान मंगलनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जो उज्जैन में स्थित है |


यातायात मार्ग
उज्जैन शहर मध्य-प्रदेश के मालवा प्रान्त में स्थित है | यहा वायु, रेल तथा सड़क मार्ग के द्वारा पंहुचा जा सकता है | इंदौर एअरपोर्ट सबसे निकटतम एअरपोर्ट है | मध्यप्रदेश के सभी स्थानों से सड़क मार्ग के द्वारा यहा पंहुचा जा सकता है | यहा इंदौर बाईपास तथा देवास बाईपास से पंहुचा जा सकता है |
यातायात मार्ग

रेलवे स्टेशन 

उज्जैन में मुख्य ४ रेलवे स्टेशन है : 

1. उज्जैन मुख्य जंक्शन  2. वि क्रम नगर स्तानक

3. चिंतामन स्तानक  4. पिंगलेश्वर स्थानक 

बस स्थानक 

1. देवास  गेट ( मुख्य बस स्थानक ) 
2. नानाखेड़ा बस स्थानक

Jyotishagya Pt. Vijay Bharti
+91-9424845308,
0734-2581222

Expert in Krishna Murti Paddhati & Traditional Astrology